राज्य स्थापना पर छलक पड़ता है जब दर्द के साथ आंसू…..

राज्य स्थापना पर छलक पड़ता है जब दर्द के साथ आंसू…..

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सरकार ने सड़के तो बना दी मगर उन सड़को से पहाड़ों पर पहुंचेगा कौन….

देहरादून। उत्तराखण्ड आन्दोलन को लगभग 30 वर्ष बीत गए है। जिन लोगों ने जोश व उत्साह के साथ जो लड़ाई लड़ी थी ऐसा लगता है कि सही मायने में वो साकार नही हो पाई। आज भी राज्य के युवाओं को रोजगार के लिए पलायन करना पड़ रहा है। करोड़-अरबो रुपये खर्च कर सरकार ने सड़के तो बना दी लेकिन आज भी गांव के बीमार बूढे मा बाप को दुर्गम क्षेत्रों से इलाज के लिए कंधे पर बैठाकर शहर के अस्पतालों में लाते है लेकिन कई मजबूर ,लाचार तो इलाज के बिना रास्ते मे ही दम तोड़ देते है। क्योकि उन्हें ले जाने को एम्बुलेंस तक नसीब नही होती। उनकी लाचारी वेदना को देखते हुए उस वक्त हमे अपने आप पर शर्मिदगी महसूस होती है जब हम राज्य स्थापना की वर्षगांठ पर बन ठन कर सीएम के कार्यक्रम में दावत का लुत्फ उठा रहे होते है।

जिस सोच को लेकर राज्य की परिकल्पना की गई थी वो वास्तव में साकार नही हो पाई। सरकारे जितनी भी आई सभी ने राज्य की जनता को गुमराह किया है। नतीजन आज उत्तराखण्ड राज्य की दिशा व सोच बदल चुकी है। अस्तित्त्व को लेकर उत्तरारखण्ड की लड़ाई अभी तक जारी है। क्योकि जब तक पहाड़ में जल, जंगल व आम नागरिकों के अधिकार सुरक्षित नही हो जाते तब तक राज्य गठन होने का कोई महत्व नहीं रह जाता है। आज राज्य आंदोलन के कई साथी इस दुनिया से रुक्सत हो गए। सिर्फ राज्य स्थापना के दिन उन्हें याद किया जाता है और दिन क्यों नही। इतिहास के पन्नों में उनकी याद गुम होकर ना रह जाये इस पर हमे मंथन करना होगा। उनकी कुर्बानी व शहादत कही व्यर्थ ना जाये इस बात को हमे समझना होगा।
शहादत के उन दिनों को याद करते है तो छलक पड़ते है आंसू। संघर्षो के वो दिन ..….
इन अधूरे सपने व सोच को लेकर जो विचार मन मे आये है उन्हें कविता के रूप में प्रस्तुत किया है।

संघर्षो की दास्ताँ बनाम सियासत…..

संघर्षो की है ये दास्ताँ पुरानी
आज की कोई नई बात नही।
जिस चमन के खातिर ताउम्र जूझते रहे
संघर्षो से, आज उस चमन के
फूलों को उठाने की भी इजाजत नही ।।
संघर्षों की है ये दास्ताँ पुरानी आज की कोई नई बात नही..।
अस्त्तिव की इस जंग में
जब पसीने के साथ बहाया था
खून का कतरा-कतरा ।
आज उन जज्बों का
कोई भी तलबगार नही ।।
कैसा अजब दस्तूर है
इस सियासत के तमाशाहइयों का।
जो खुद तो कर रहे है मौज
पर जिन्होंने दी कुर्बानी आज
उनसे किसी का कोई सरोकार नही ।।
संघर्षो की है ये दास्ताँ पुरानी ….आज की

कोई नई बात नही ।।
सियासत भी क्या खूब है दोस्तो ,
संघर्षो का देकर वास्ता ,
कहते है हर ख्वाइश होगी पूरी।
पर मिली नही मंजूरी ।
आज उनकी जुबाँ का भी
कोई एतबार नहीं ।।
संघर्षो की है ये दास्ताँ पुरानी ….आज की

कोई नई बात नही।

सुभाष कुमार…प्रेम बंधु

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