सियासतों का खेल बनाम महामारी का सितम

सियासतों का खेल बनाम महामारी का सितम

कोरोना को लेकर सुभाष कुमार प्रेमबन्धु की एक कविता…..

बंद करो सियासत का खेल अब तो करो शरम ।
पहले ही तकलीफों से जूझ रहे थे हम !

उस पर आया है अब महामारी का सितम….।।

गम का ना था कोई फसाना।

आमदनी थी थोड़ी कम !

मुश्किलो के दौर में भी कितने खुश थे हम।
तकलीफे सहते सहते हमने जीती थी

ना जाने कितनी जंग।
लेकिन आज सियासतों के इस

खेल में महामारी का है सितम….।।

जब बजने लगा चुनाव का बिगुल

तो नेताओ में मचने लगी हुड़डुंग।

टिकटों की इस होड़ मे सामाजिक

दायरा भी हुआ खत्म।

अब तो शहर में फूटने लगा

संक्रमण का बम।

आज सियासत के इस खेल

में है महामारी का सितम…।।

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