विकलांग होकर बुलंद हौसलों ने छू लिया आसमां…..

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राष्ट्रीय पुरुस्करों से मिले सम्मान ने देश मे कायम की नई मिसाल
। किसी ने सच ही कहा है कुछ करने की चाह हो, तो बड़ी से बड़ी बाधा भी छोटी लगने लगती है।
इसका जीता-जागता उदाहरण कश्मीर घाटी का रहने वाला शारीरिक रूप से दिव्यांग जावेद अहमद टाक हैं.

जावेद अहमद टाक कश्मीर घाटी के अनंतनाग जिले के रहने वाले हैं और उन्होंने व्हीलचेयर के सहारे समाजसेवा करके मानवता की नई मिसाल कायम की है. उनके साहस और पराक्रम के लिए उन्हें न केवल राज्य स्तर पर विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, बल्कि 8नवंबर को भारत सरकार द्वारा पद्म श्री पुरस्कार से भी नवाजा जा चुका है.

जावेद अहमद टाक 1997 में स्थायी रूप से विकलांग हो गए थे, जब उन्हें अज्ञात बंदूकधारियों ने गोली मार दी थी, लेकिन उसके बाद भी जावेद ने हार नहीं मानी और सामाजिक कार्य करते रहे. जब वह 23 वर्ष के थे, तब तक वह किसी अन्य लड़के की तरह ही थे.

संयुक्त और संपन्न परिवार के लिए सब कुछ ठीक चल रहा था, लेकिन 21 से 22 मार्च 1997 की रात को एक दुखद घटना घटी, जिसने उनकी पूरी जिंदगी ही बदल कर रख दी.

जावेद अहमद टाक ने आवाज-द वॉयस को बताया, ‘मैं उस रात अपनी मौसी के घर गया था. सब कुछ ठीक था, घर में सब खुश थे. बंदूकधारी देर रात घर में घुसे और चचेरे भाई का अपहरण करने लगे. मैंने उसे (चचेरे भाई को) बचाने की कोशिश की, लेकिन बंदूकधारियों ने मुझ पर गोली चला दी. अगले दिन अस्पताल के बिस्तर पर मेरी आंखें खुलीं. कुछ दिनों बाद मैं घर आया, लेकिन स्थायी रूप से विकलांग हो गया और गोलियों ने मेरी रीढ़ की हड्डी और गुर्दे को घायल कर दिया था.’

बंदूकधारियों की गोलीबारी में जावेद का चचेरा भाई मौके पर ही मारा गया, जबकि जावेद अहमद स्थायी रूप से विकलांग हो गया. हादसे के वक्त जावेद की उम्र 23 साल थी और वह अनंतनाग के खन्ना बिल डिग्री कॉलेज से ग्रेजुएशन कर रहा था.

वे अपने अतीत को याद करते हुए कहते हैं, ‘मैं तीन साल से अधिक समय से बिस्तर पर पड़ा रहा. विकलांगता के कारण, मैं 24 घंटे बिस्तर पर पड़ा रहा, इस सोच में खो गया कि मैं अब काम के लायक नहीं रह गया हूँ. मुझे रात को नींद नहीं आती थी, मैं करोड़ों रात करवटों में बिता देता था. मैंने सारी उम्मीद छोड़ दी. मुझे इस बात का दुख था कि मैं जीवन भर अपने परिवार के लिए बोझ बन गया हूं. लेकिन एक दिन मैंने महसूस किया कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए कोई भी कमजोरी बाधा नहीं बननी चाहिए.’

जावेद टाक ने कई वर्षों तक महानगरीयता का जीवन जिया. जावेद ने जब घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया, तो उन्हें नई जिंदगी मिली. उन्होंने बताया, ‘एक दिन मैं बिस्तर पर लेटा था और अपने जीवन के बारे में सोच रहा था. तभी मुझे घर के बाहर कुछ बच्चों की आवाज सुनाई दी. मैंने अपनी मां से बच्चों को लाने के लिए कहा. मैंने उन्हें पढ़ाना शुरू किया, कुछ ही दिनों में मेरा कमरा एक छोटा स्कूल बन गया. इसने मुझमें जीने का जुनून और आत्मविश्वास जगाया. तनाव भी कम हुआ. फिर मैंने उच्च शिक्षा हासिल करने का फैसला किया.’

जावेद के पास कश्मीर विश्वविद्यालय से सामाजिक कार्य में मास्टर डिग्री है. उन्होंने एम.एड और कंप्यूटर कोर्स भी किया. अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद, उन्होंने शारीरिक रूप से अक्षम बच्चों के लिए ‘जेबा आपा’ नामक एक स्कूल की स्थापना की. स्कूल में सैकड़ों बच्चे हैं, और उन्हें पढ़ाने के लिए कई शिक्षक हैं.

टाक कहते हैं, ‘विकलांगता के बाद, मैंने शारीरिक विकलांग लोगों की सेवा करने का जुनून विकसित किया. मैं दूर-दराज के इलाकों के स्कूलों में विकलांग बच्चों की स्थिति का जायजा लेने गया. विकलांग बच्चों की दुर्दशा को देखते हुए मैंने एक नई पहल की शुरुआत की. मैंने शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए एक स्कूल की स्थापना की. इस समय दक्षिण कश्मीर के चार जिलों के करीब 120बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं.’

जो बच्चे सड़कों पर भीख मांग रहे हैं और विकलांगता के कारण उनका शोषण किया जा रहा है, उन्हें स्कूल लाया जाता है और उन्हें मुफ्त शिक्षा और प्रशिक्षण के साथ-साथ सभी प्रकार की सुविधाएं प्रदान की जाती हैं और अब वे खुशी-खुशी अपना जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

उन्होंने बताया, ‘स्कूल अब आठवीं कक्षा तक हो गया है. मैं शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों के लिए एक कॉलेज स्थापित करने का इरादा रखता हूं. हम जीविकोपार्जन के लिए व्यावसायिक पाठ्यक्रम भी प्रदान करते हैं.’

स्कूल का नाम ‘जेबा आपा’ रखने के बारे में पूछे जाने पर जावेद ने कहा कि इलाके के लोग मेरी दादी को ‘जेबा आपा’ कहकर बुलाते थे. वह हमेशा दूसरों की मदद के लिए मौजूद रहती थीं. इसलिए मैंने अपने स्कूल का नाम जेबा आपा रखा. कश्मीर में आपा को बहन कहा जाता है.

जावेद अहमद टाक खुद अपंगता का जीवन जी रहे हैं, लेकिन उन्होंने अन्य विकलांग लोगों की विकलांगता को अपनी मजबूरी नहीं बनने देने का फैसला किया है. कमजोर और बेबस लोगों के मददगार जावेद ने ऐसा मुकाम हासिल कर लिया है कि आज कश्मीर उनके जिक्र के बिना अधूरा सा लगता है.

आज वे विकलांगों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. जावेद अहमद टाक को विकलांग व्यक्तियों के लिए उनकी उत्कृष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रीय और राज्य पुरस्कारों सहित कई सम्मानों से सम्मानित किया गया है. इसके अलावा 2015में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ में उनकी (जावेद की) तारीफ की थी.

जावेद टाक ने 2003में ह्यूमैनिटेरियन वेलफेयर ऑर्गनाइजेशन नाम से एक एनजीओ शुरू किया था. आज, संस्था सैकड़ों विकलांग बच्चों का घर है. संगठन के माध्यम से, वे शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की मदद करने के साथ-साथ उन्हें प्रशिक्षित करते हैं और उन्हें विभिन्न कौशल के माध्यम से अपना जीवन यापन करने में सक्षम बनाते हैं, ताकि वे समाज में सम्मान के साथ अपना जीवन व्यतीत कर सकें.

अब जावेद खुद को अपंग नहीं मानते, समृद्ध जीवन जी रहे हैं. वह दूसरों को भी खुद से प्यार करना और अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाता है. वे कहते हैं, ‘मैं जम्मू और कश्मीर में एक संस्थान स्थापित करने का इरादा रखता हूं जहां इन विकलांग लोगों को कॉलेज स्तर तक शिक्षित किया जा सके और साबित किया जा सके कि वे सक्षम हैं और खुद को साबित करने की क्षमता रखते हैं.’

उन्होंने कहा कि कोई भी इंसान शत-प्रतिशत परफेक्ट नहीं होता. प्रत्येक में कमी है. अपंगता को मैंने करीब से देखा है, निःशक्तता एक ऐसी चीज है कि अगर कोई व्यक्ति खुद को प्रोत्साहित नहीं करेगा, तो ऐसा व्यक्ति जिंदा लाश बन जाएगा. सभी विकलांग व्यक्तियों से मेरी अपील है कि वे कभी भी विकलांगता को बाधा न बनाएं. नेक इरादों और ईमानदारी को अपना सिद्धांत बना लें, आत्मविश्वास और लगन से हर लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है.

जावेद ने कहा, मैं विकलांग व्यक्तियों के माता-पिता से भी अपील करता हूं कि वे अपने बच्चों का सम्मान करें और उन पर भरोसा करें और उन्हें पूरा सहयोग दें. परिवार जितना अधिक अपने बच्चों का समर्थन करेगा, वे जीवन में उतने ही सफल होंगे.’

जावेद विभिन्न कार्यक्रमों और संगोष्ठियों के माध्यम से विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों को बहाल करने और उनके सामने आने वाली समस्याओं को उजागर करने का प्रयास कर रहे हैं. वे विकलांग लोगों के प्रति समाज के रवैये में बदलाव चाहते हैं. जावेद के अनुसार, विकलांग लोगों को सशक्तिकरण और समर्थन की जरूरत है, दया की नहीं. विकलांग लोगों में विश्वास पैदा करना, उन्हें विश्वास दिलाना कि वे भी आसमान को छू सकते हैं.

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